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Hindi sex stories काम वासना की शिकार हुई माया

Written By Mukta on Thursday 21 January 2016 | January 21, 2016

Hindi sex stories काम वासना की शिकार हुई माया

आज मैं आप लोगो के लिए एक और नही कहानी लेकर आया हूँ, बात अभी 2 दिन पहले की ही है, मैं आपनी ही एक ऑफीस स्टाफ जिसका नाम माया है, जिसकी उमर 19 साल, रंग सावला, बॉडी स्लिम है, के साथ किसी अफीशियल वर्क के लिए इंदूरे गया, इंदूरे के लाइ हम आपने घर से सूभ लगभग 6 बजे निकले और 12 बजे तक पहुच गये, हम दोनो ही माया की स्कूटी से वाहा पर गये थे, अफीशियल काम मे हमे लगभग शाम के 7 वही पर बाज गये, वाहा से वापिस आते हुए माया ने कहा की ‘सिर स्कूटी मैं ड्राइव करूगी’, तो मैने कहा की ठीक है, हू स्कूटी ड्राइव करने लगी और मैं पीछे बैठ गया, स्कूटी आपनी ही रफ़्तार मे आपनी मंज़िल की और बढ़ रही थी.

अचानक ही मेरी नज़र स्कूटी के मिरर्स पे गयी, उन मिरर्स मे उसकी च्चती का उभार नज़र आ रहा था, उसके छ्होटे छ्होटे नींबू जैसे उभर देखते ही मेरे माइंड ने डाइवर्षन ले ली, अब मैं उसको एक अलग ही नज़र से देख रहा था, मेरे अंदर काम वासना जाग गयी, अब मेरा मॅन कर रहा था की उसको चोद डू, बुत अभी हम ड्राइव पर थे, इसलिए मैं च्चाःकर भी कुच्छ कर नही सकता था, मैने एक प्लान ब्नाने की सोची की अगेर किसी तरह से ये मेरे साथ एक रात होटेल मे रुक जाए तो मज़ा आ जाए, बुत उसको रात भर होटेल मे रोकना क्काफी मुस्किल था, मुस्किल ही नही इंपॉसिबल था, क्योकि वो एक विलेज से बिलॉंग कराती थी, और मोस्ट्ली विलेजर्स लड़कियो को बाहर नही भेजते और वो भी एक अजनबी के साथ, बुत वो आपने घर पर सिर्फ़ ऑफीस जाने का बोलकर आई थी और लगभग 8 बजे तक वापिस आपने घर पर वो हमेशा पहुच जाती थी, मैने सोचा की अगर थोड़ी देर और लाते हो जाए तो सायद वो रात मे ड्राइव ना करे और फिर मजबूरन ही हमे रास्ते मे होटेल मे रुकना पड़ेगा.

बुत वो च्चहती थी की अगर थोड़ा से तेज ड्राइव करे तो लगभग 12 बजे तक हम घर पहुच जाएगे, इसलिए वो गाड़ी थोड़ा सा ताज ड्राइव कर रही थी, रास्ते मे झटको के साथ साथ मैं थोड़ा थोड़ा उसके करीब सरकने लगा, जैसे जैसे मे उसके करीब सरकता वो मुझसे दूर होने की कोसिस करते हुए थोड़ा आयेज सरकने लगती, थोड़ी ही देर मे मुझसे परेसां होकर उसने स्कूटी रोक दी और मुझे ड्राइव करने को कहा, मैं इसी मौके की तलाश मे था, मैने स्कूटी को धीरे धीरे ड्राइव करना शुरू कर दिया, मैं स्कूटी को लगभग 40 की ही बढ़ता पर चला रहा था, वो भी इस बात को जानती थी की रात मे मुझे बिना लेनज़स के कुच्छ भी देखाए नही देता है, इसलिए भी सायद उसने मुझे कुच्छ भी नही कहा, लगभग एक घंटे मे हम सांवेर नाम की जगह तक पहुचे, हल्की हल्की ठंडी होने की वजह से हमे टी की ज़रूरात महसूस हुई, तो मैने उसे टी पीने के लिए पूछा तो उसने हा कर दी और मैने रास्ते मे एक टी स्टाल पर स्कूटी रोक दी, और हम टी पीने बैठ गये.

अब मैने आपना जाल बनट हुए उसको कहा की माया अंधेरा काफ़ी हो गया है और हाइवे पर लाइट भी नही होने के कारण सॉफ सॉफ दिखाई भी नही दे रहा है, अभी सायद उज्जैन पहुचने मे ही हमे एक घंटा और लग जाएगा, उज्जैन पहुचते हुए ही हमे 9 बाज जाए गे और वाहा से भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव और बक्या रहती है और स्कूटी की दीं लाइट के साथ इतनी रात मे इतना लंबा सफ़र ठीक नही है, क्या हम आज उज्जैन ही रुक जाए? सुबह 4 बजे ही यहा से घर की और ड्राइव करेगे तो भी हम 8 बजे तक मॉर्निंग मे घर पहुच जाएगे, सूभ सूभ 4 बजे के बाद तो उजाला बढ़ता ही जाता है, और हमे ड्राइव करने मे भी कोई दिक्कत नही होगी, उसने कहा की ‘सिर अगारहूम कोसिस करके ताज ड्राइव करे तो भी 1 बजे ट्के घर पहुच जाएगे, ज़्यादा लाते करना सही नही है, अब जल्दी से यहा से शेलेट है,’ अब मेरे पास कोई भी जवाब नही था और मैने स्कूटी की के उसकी ओर बढ़ा दी, अब भी ही ड्राइव कर रही थी और मैने भी उम्मीद छोड़ दी थी.

लगभग हमे अभी चले हुए लगभग 40 मिनिट ही हुए थे, और सयद हम लोग उज्जैन नगरी के करीब पहुच ही चुके थे की अचानक स्कूटी बब्बलिंग करने लगी और उनकोनटरोल होने लगी, अचानक ही उसने ब्रेक लगा दिए और मैने बॅलेन्स होने के लिए दोनो हाथ उसकी कमर पे रख दिए, बड़ा ही सुखद अनुभव था ये भी, हमे उतार कर देखा तो स्कूटी पंक्चर हो चुकी थी, मेरे चेहरे पर एक काटी हसी आई क्योकि उस स्कूटी मे स्तूपने भी नही थी, जैसे ही माया ने मेरी और हैरात भारी नाज़रू से देखा तो मैने आपने चेहरे पर परेसांी भरे भाव लाते हुए कहा की “अरे यार ये क्या हुआ? अब क्या करेगे? चलो घबराव मत, स्कूटी मुझे दो और तेज कदमो से मेरे साथ शेलेट है, सिटी ज़्यादा दूर नही है, कुच्छ ना कुच्छ जुगाड़ हो ही जाएगा, किसी ना किसी पंक्चर वाले को फोन लगाकर बुला लेगा औ राइज़ ठीक करा कर चलेगे,” और मैने स्कूटी पकड़ कर ताज कदमो के साथ बढ़ने शुरु कर दिया, और वो भी मेरे साथ तेज कदमो के साथ चलने लगी.

सिटी के अंदर पहुचते हुए हमे ½ घंटा लग ही गया, फिर मैने पंक्चर वाले की शॉप सर्च की और उसे कॉल करके बुलाया, काफ़ी देर बाद वो आया (शायद उसका घर दूर था) और हमारी स्कूटी का पंक्चर बनाया, इसमे ही हमे लगभग ½ घंटा और लग गया, अब 10:40 हो चक्का था और मैने स्कूटी स्टार्ट कर ली और कहा की जल्दी बैठो नही तो और देर हो जाएगी, तो उसने रिप्लाइ मे कहा की “नही सिर, आज यही उज्जैन मे रुक जाते है, सुबह ही चलेगे” मैने कहा की घबराव नही अब स्कूटी मैं ड्राइव कराता हूँ, कोसिस करूगा थोड़ी और तेज चलाने की, तो उसने जवाब दिया की नही सिर अगर आयेज रास्ते मे फिर से स्कूटी पंक्चर हो गयी तो? अब मुझे आपना मामला जमता हुआ देखाई दिया पर फिर भी मैने उसको कहा की तुम्हारे घर पर सभी टेसिओं करेगे और अगर उनको ब्टाया की तुम सिर के साथ उज्जैन मे ही रुक गयी हो तो कही वो कुच्छ ग़लत ना सोचे? तो उसने आपना फोन निकाला और आपने घर फोन लगाया, फोन उसके फादर ने उठाया “एस माया कहा पर है तू? इंदूरे से वापस आ गयी तू?”.

उसने रिप्लाइ किया “नही पापा, सिर और मैं 8 बजे मीटिंग से फ्री हुए ऑरा ब हम इंदूरे स्टेशन पर पहुचे है और यहा से ट्रेन 12 बजे है और वो भी पस्ससंगेर ट्रेन जो की हमे 8 बजे तक होमे स्टेशन पर उतारेगी, मैं सुबह 10 बजे तक घर आ जौगी,” उसके पापा ने कहा की “ओक बेटा, एक बार सिर से मेरी बात करऊ,” उसने फोन मेरी ओर किया तो मैने सिचुयेशन को संभालते हुए कहा की “अंकल सॉरी आज थोड़ा टाइम मीटिंग मे ज़्यादा हो गया, और अब ट्रेन भी 12 बजे है, एक फ्रेंड आपनी बाइक ऑफर कर रहा है, अगर आप कहे तो उससे ही आ जाते है? कोसिस करेगे तो तेज ड्राइव करके 5 या 6 बजे तक घर पहुच जाएगे?” अंकल ने रिप्लाइ किया “नही सिर, लदी साथ मे है, इतनी रात को त्वव्हीलर से आने ठीक नही होगा, आप लोग उसी ट्रेन से आ जाइए कोई दिक्कत नही,” मैने कहा “ओक अंकल, मैं माया को घर तक ड्रॉप करके ही आपने घर जौगा,” उन्होने ओक, टके केर कहते हुए लाइन डिसकनेक्ट कर दी, अब आयेज क्या हुआ? हम होटेल मे रुके या नही?
 
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